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E-ISSN: 3048-7641     Impact Factor: 9.11

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योगवासिश्ठ में ज्ञानयोग का दार्षनिक एवं साधनात्मक स्वरूप

Author(s) Dr. Kamal Kishore
Country India
Abstract ज्ञानयोग तथ्यों तक पहुंचने का निश्चित मार्ग है। ज्ञान का शाब्दिक अर्थ होता है विद्या और विवेक। इस प्रकार ज्ञानयोग को विद्या और विवेक के योग के रूप में जाना जाता है। ज्ञान का तात्पर्य अन्तर्प्रज्ञा के प्रकाश से है। ज्ञानयोगी विशुद्ध बुद्धि के द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार कर अपना मार्ग प्रशस्त करता है। ज्ञान के बिना मोक्ष लाभ नहीं हो सकता है, वह तो इस उपलब्धि में निहित है कि यह यथार्थता क्या है और वह भय, जन्म-मृत्यु से परे है। आत्मा का साक्षात्कार ही सर्वोत्तम श्रेयस है।
महर्षि वशिष्ठ जी राम से कहते हैं कि इस जगत में आदि और अन्त से रहित प्रकाश स्वरूप परमात्मा ही है। इस प्रकार जो दृढ़ निश्चय है, उसी निश्चय को ज्ञानी महात्मागण ‘सम्यक् ज्ञान’ यानि परमात्मा के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान कहते हैं। तत्वज्ञान मनुष्य के अपने ही मन के दुःखों से छुटकारा पाना है जो उसे मोक्ष की ओर ले जाता है। आध्यात्मिकता की ओर की हुई चेष्टाओं के द्वारा मन ज्ञान स्वरूप हो जाता है परन्तु अज्ञान के द्वारा यह सांसारिक स्वभाव का हो जाता है। यदि मन को ज्ञान रूपी जल में स्नान कराया जाये और सारी मलीनता धो डाली जाये तो मोक्ष के लिए प्रयत्न करने वालों के लिए वह अपने स्वाभाविक तेज से प्रकाश करेगा।
इस मुक्ति में संकल्प से रहित, समस्त विषयों से रहित केवल चिन्मय परमात्मा ही सच्चिदानन्द रूप से विराजमान रहता है। उससे अन्य कुछ भी नहीं। इसलिए कहा है कि जब मन ज्ञान के द्वारा सारी कामनाओं से रहित होकर अपने सूक्ष्म रूप का भी नाश कर देता है, तब जो आनन्द उत्पन्न होता है वही सच्चा आनन्द है।
Published In Volume 6, Issue 5, September-October 2025
Published On 2025-09-13
DOI https://doi.org/10.63363/aijfr.2025.v06i05.1323
Short DOI https://doi.org/g93rmx

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